Ahoi Ashtami 2024: अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) भारतीय महिलाओं का बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। भारतीय महिलाएं बहुत ही श्रद्धा और शांत मन्न से यह व्रत रखते है। यह व्रत संतान की सुख समृधि के लिए किया जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ की तरह होता है क्योकि यह व्रत भी निर्जल और बिना खाये पीये रखा जाता है। व्रत को शाम को आसमान में तारों को देखकर खत्म किया जाता है। कुछ महिलायें चाँद को देखकर व्रत को खत्म करती हैं।
अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के 4 दिन बाद और दीपावली के 8 दिन पहले आता है। यह माता अहोई का व्रत है जो कि कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है जिस वजह से इसे अहोई अष्टमी के नाम से जाना जाता हैं। अहोई अस्टमी को अहोई आथे (Ahoi Ashtami) के नाम से भी जाना जाता है|
अहोई अष्टमी कब है 2024 में (Ahoi Ashtami Kab Hai 2024 Mein)
अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस बार 2024 में अहोई अष्टमी का व्रत 24 अक्टूबर 2024 दिन गुरूवार है।
- अहोई अष्टमी 2024: 24 अक्टूबर 2024, गुरूवार
- अहोई अष्टमी 2025: 13 अक्टूबर 2025, सोमवार
- अहोई अष्टमी 2026: 01 नवंबर 2026, रविवार
अहोई अष्टमी पूजा का मुहूर्त 2024 (Ahoi Ashtami Puja Ka Muhurat 2024)
- अहोई अष्टमी पूजा का मुहूर्त शाम के 5 बजकर 42 मिनट से शाम के 6 बजकर 59 मिनट का है।
अहोई अष्टमी पूजा की विधि (Ahoi Ashtami Puja Vidhi)
भारतीय महिलाएं सूर्योदय होने से पहले स्नान करके साफ़ सुथरे वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लेती है। और फिर अहोई माता (Ahoi Mata) की आकृति गेरु या लाल रंग से दीवार में बनाती हैं। अष्टमी की पूजा की विधि के अनुसार महिलाएं शाम को पूजा और पाठ घर में या मंदिर जा कर करती है। फिर सूर्यास्त होने के बाद तारे निकलने का इंतज़ार करती हैं। महिलाएं अहोई अष्टमी की पूजा सामग्री जैसे एक चांदी या धातु की अहोई चांदी मोती की माला, जल से भरा कलश, दूध, भात, हलवा, पुष्प और दीपक आदि तैयार करती हैं और संतान के हाथो से जल ग्रहण कर के अपनी व्रत का समापन करती हैं।
अहोई अष्टमी की व्रत कथा (Ahoi Ashtami Ki Vart Katha)
प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपापोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी।
दैवयोग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था! वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।
कुछ दिनों बाद उसका बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात् दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उसके हाथों एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात उसके सातों बेटों की मृत्यु हो गई।
यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा।
साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। तत्पश्चात् उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ती हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।
मुझे भारतीय त्योहारों और भारत की संस्कृति के बारे में लिखना पसंद है। में आप लोगों से भारत की संस्कृति के बारे में ज्यादा से ज्यादा शेयर करना चाहती हूँ। इसलिए मैंने ये ब्लॉग शुरू की है। पेशे से में एक अकाउंटेंट हूँ।