Chhath Puja 2024: दिवाली के बाद छठ पूजा का काफी महत्व होता है। शास्त्रों में सूर्यषष्ठी नाम से बताए गए चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत को पूर्वांचल यानी पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और नेपाल की तराई में खास तौर पर मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य भगवान (Lord Sun) और उनकी पुत्री उषा की पूजा का एक महत्वपूर्ण अवसर है। छठ पूजा के दौरान, प्रसाद तैयार किया जाता है और सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जो सूर्य भगवान को समर्पित होता है। इस त्योहार में सूर्य की उपासना, पवित्र जल से स्नान, और प्रार्थना की जाती है। छठ पूजा का आयोजन सूर्योदय और सूर्यास्त के समय होता है।
पहला दिन नहाय-खाय से यह पर्व मनाया जाता है। इसके बाद उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक यह पर्व मनाया जाता है। सूर्य उपासना का महापर्व छठ कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी की तिथि तक भगवान सूर्यदेव की अटल आस्था के रूप में मनाया जाता है।
छठ पूजा कब है 2024 (Chhath Puja Kab hai 2024 mein)
इस बार छठ का यह पर्व 05 नवंबर 2024 को शुरू होगी और 8 नवंबर 2024 को ख़त्म होगी।
1. नहाय-खाए | 05 नवंबर 2024 |
2. खरना (लोहंडा) | 06 नवंबर 2024 |
3. सायंकालीन अर्घ्य | 07 नवंबर 2024 |
4. प्रात:कालीन अर्घ्य | 08 नवंबर 2024 |
छठ पूजा चार दिनों तक मनाई जाती है, हर दिन दिन अलग अलग अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों से मनाया जाता है:
- नहाय खाय (Day 1): पहला दिन, जिसे नहाय खाय के नाम से जाना जाता है, इस दिन भक्त सूर्योदय से पहले ही नदियों या जलाशयों में डुबकी लगाने से होती है। भक्त उपवास रखते हैं और चावल, दाल और कद्दू से बने भोजन का सेवन करते हैं।
- लोहंडा और खरना (Day 2): दूसरे दिन, जिसे लोहंडा के नाम से जाना जाता है, इस दिन भक्त प्रसाद तैयार करते हैं जिसमें खीर, पूड़ी और फल शामिल होते हैं। वे सूर्य देव की प्रार्थना करते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद खरना पूजा के बाद अपना उपवास तोड़ते हैं।
- संध्या अर्घ्य (Day 3): तीसरा दिन, जिसे संध्या अर्घ्य भी कहा जाता है, छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन श्रद्धालु डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए शाम के समय घाटों (नदी के किनारे) पर इकट्ठा होते हैं। जिसमें श्रद्वालु कमर तक पानी में खड़े होते हैं और हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं।
- उषा अर्घ्य (Day 4): अंतिम दिन, जिसे उषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है, यह सूर्योदय से पहले होता है। इस दिन श्रद्धालु उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए घाटों पर जाते हैं और समृद्धि और खुशहाली की प्रार्थना के साथ छठ पूजा को अलविदा कहते हैं।
छठ पूजा विधि (Chhath Puja Vidhi)
इस पर्व में पहले दिन नहाय-खाय में काफी सफाई से बनाए गए चावल, चने की दाल और लौकी की सब्जी का भोजन व्रती के बाद प्रसाद के तौर लेने से इसकी शुरुआत होती है। दूसरे दिन लोहंडा या खरना में शाम की पूजा के बाद सबको खीर का प्रसाद मिलता है. अगले दिन शाम में डूबते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर अगली सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पूजा का समापन होता है. छठ पर्व के आखिर के दोनों दिन ही नदी, तालाब या किसी जल स्रोत में कमर तक पानी में जाकर सूर्य को अर्घ्य देना होता है.
सबसे कठिन व्रत कहा जाने वाला ‘दंड देना’ भी इस दो दिन के दौरान ही किया जाता है. इसे करने वाले शाम और सुबह अपने घर से पूजा होने की जगह तक दंडवत प्रणाम करते हुए पहुंचते और जल स्रोत की परिक्रमा करते हैं। दंडवत का मतलब जमीन पर पेट के बल सीधा लेटकर प्रणाम करना है। सारे श्रद्धालु बहुत ही आदर के साथ इनके लिए रास्ता छोड़ते हैं।
महिला प्रधान व्रत के चारों दिन सबसे शुद्धता, स्वच्छता और श्रद्धा का जबर्दस्त आग्रह रहता है। व्रती जिन्हें ‘पवनैतिन’ भी कहा जाता है, इस दौरान जमीन पर सोती हैं और बिना सिलाई के कपड़े पहनती हैं। वे उपवास करती हैं और पूजा से जुड़े हर काम को उत्साह से करती हैं। ‘छठ गीत’ नाम से मशहूर इस दौरान गाए जाने वाले लोकगीतों को इन महिलाओं का सबसे बड़ा सहारा बताया जाता है।
छठ पूजा का महत्व
भारत में सूर्य को भगवान मानकर उनकी उपासना करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से चली आ रही है। सूर्य और उनकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण में विस्तार से की गई है। रामायण में माता सीता के जरिए छठ पूजा किए जाने का वर्णन है। वहीं महाभारत में भी इससे जुड़े कई तथ्य हैं। मध्यकाल तक छठ व्यवस्थित तौर पर पर्व के रूप में प्रतिष्ठा पा चुका था, जो आज तक चला आ रहा है।