Makar Sankranti 2025: मकर सक्रांति भारत का प्रमुख पर्व है यह पौष मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। मकर सक्रांति का अर्थ मकर राशि से है और सक्रांति का अर्थ प्रवेश करना होता है। जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तो इसे मकर सक्रांति कहते है।
मकर सक्रांति को अलग-अलग राज्यों में अलग नाम से जाना जाता है जैंसे तमिलनाडु में मकर संक्रांति को पोंगल के नाम से और गुजरात, राजस्थान में मकर संक्रांति को उत्तरायण के नाम से और हरियाणा और पंजाब में मकर संक्रांति को माघी के नाम से जाना जाता है।
मकर सक्रांति कब है 2025 में (Makar Sankranti kab hai 2025 mein)
मकर संक्रान्ति का पर्व हर साल पौष माष को मनाया जाता है। इस साल 2024 में यह पर्व सोमवार के दिन 15 जनवरी के दिन है। मकर सक्रांति के बाद शरद ऋतु के जाने का आरम्भ हो जाता है और वर्षा ऋतु के दिन शुरू हो जाते हैं, और इस महीने से दिन लम्बे और रातें छोटी होने लगती है।
मकर संक्रांति 2025 का शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat of Makar Sankranti 2025)
मकर संक्रांति प्रतिवर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाया जाती है। इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी। पुण्य काल के लिए शुभ मुहूर्त मकर संक्रांति पुण्य काल सुबह 07:15 से शाम के 05:46 तक है, जोकि कुल 10 घंटे और 31 मिनिट है। इसके अलावा महा पूण्य काल का शुभ मुहूर्त सुबह 07:15 बजे से 09:00 बजे के बीच है जोकि कुल 1 घंटे 45 मिनिट के लिए है।
मकर संक्रांति 2024 | 14 जनवरी |
मकर संक्रांति पुण्य काल मुहूर्त | सुबह 07:15 से शाम के 05:46 तक |
मकर संक्रांति महा पूण्य काल मुहूर्त | सुबह 07:15 से सुबह के 09:00 तक |
मकर संक्रांति की पूजा विधि (Makar Sankranti Puja Vidhi)
सबसे पहले पंचांग देखकर पूण्य काल मुहूर्त और महा पुण्य काल मुहूर्त के अनुसार पूजा की शुरुआत की जाती है। इसके बाद एक थाली में 4 काली और 4 सफेद तिल के लड्डू रखे जाते हैं साथ ही कुछ पैसे भी थाली में रखते हैं। इसके बाद थाली में अगली सामग्री चावल का आटा और हल्दी का मिश्रण, सुपारी, पान के पत्ते, फूल और अगरबत्ती रखी जाती है। इसके बाद भगवान सूर्य देव के प्रसाद के लिए एक प्लेट में काली तिल और सफेद तिल के लड्डू, कुछ पैसे और मिठाई रख कर भगवान को चढाया जाता है। यह प्रसाद भगवान् सूर्य को चढ़ाने के बाद उनकी आरती की जाती है। इसके बाद सूर्य मंत्र ‘ॐ हरं ह्रीं ह्रौं सह सूर्याय नमः’ का कम से कम 21 या 108 बार उच्चारण किया जाता है। कुछ लोग इस दिन पूजा के दौरान 12 मुखी रुद्राक्ष भी पहनते हैं।
मकर सक्रांति क्यों और कैसे मनायी जाती है
वसंत ऋतु के आने के बाद फसलें लहराने लगती है और फसलें अच्छी होने लगती हैं। खरीब की फसलों के बाद रबी की फसलें होने लगती हैं और सरसों के फूल महकने लगते हैं। दक्षिण भारत में इसे पोंगल के नाम से मनाया जाता है। इस दिन बच्चे पतंगे भी उड़ाते हैं। उत्तर भारत में इसको लोहड़ी ,पतंगोत्सव ,खिचड़ी पर्व आदि नाम से भी जाना जाता है। शरद ऋतु के समाप्त होने से बहुत सी बीमारियां जल्दी होने लग जाती हैं जिससे तिल और गुड़ से बने पकवान का प्रसाद बनाया जाता है। इसको उत्तर भारत में उत्तरायन ,माघी ,खिचड़ी आदि नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग जप, तप, दान करते हैं और गंगा में स्नान करने जाते है।
मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व (Importance of Makar Sankranti)
- मकर सक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर गए थे, क्योकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं। और इसी दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।
- महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह मकर सक्रांति के दिन ही त्याग दी थी। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि उत्तरायण एक शुभ दिन है जो व्यक्ति इस दिन अपनी देह का त्याग करता है वो मोक्ष को प्राप्त होता है।
- और इसका एक महत्व ये भी है कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। इन सभी महत्व के कारण मकर सक्रांति भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
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