महामाया देवी मंदिर, 51 शक्तिपीठों में से एक है | Mahamaya Devi Temple is one of the 51 Shaktipeeths

Ratanpur Mahamaya Devi Mandir: छत्तीसगढ़ स्थित रतनपुर का महामाया देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में देवी माता के अनेक सिद्ध मंदिर हैं, जिनमें माता के 51 शक्तिपीठ सदा से ही श्रद्धालुओं के लिए विशेष धार्मिक महत्व के रहे हैं। इन्हीं में से एक है छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में रतनपुर स्थित मां महामाया देवी मंदिर कहा जाता है।

देवी महामाया का पहला अभिषेक और पूजा-अर्चना कलिंग के महाराज रत्रदेव (Maharaj Ratradev) ने 1050 में रतनपुर में की थी। आज भी यहां उनके किलों के अवशेष देखे जा सकते हैं। ऐतिहासिक, धार्मिक तथा पर्यटन की दृष्टि से यह प्रदेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है।

छत्तीसगढ़ में अनादि काल से शिवोपासना के साथ साथ देवी उपासना भी प्रचलित थी। शक्ति स्वरूपा मां भवानी यहां की अधिष्ठात्री हैं। यहां के सामंतो, राजा-महाराजाओं, जमींदारों आदि की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित आज श्रद्धा के केंद्र बिंदु हैं। छत्तीसगढ़ में देवियां अनेक रूपों में विराजमान हैं। श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ इन स्थलों को शक्तिपीठ की मान्यता देने लगी है।

प्राचीन काल में देवी के मंदिरों में जवारा बोई जाती थी और अखंड ज्योति कलश प्रज्वलित की जाती थी जो आज भी अनवरत जारी है। ग्रामीणों द्वारा माता सेवा और ब्राह्मणों द्वारा दुर्गा सप्तमी का पाठ और भजन आदि की जाती है। श्रद्धा के प्रतीक इन स्थलों में सुख, शांति और समृद्धि के लिये बलि दिये जाने की परंपरा है।

महामाया देवी मंदिर लोककथा (Mahamaya Devi Mandir Lok Katha)

शक्ति पीठों की स्थापना से संबंधित एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है। देवी माता का यह मंदिर उनके शक्तिपीठों में से एक है। शक्तिपीठ उन पूजा स्थलों को कहते हैं, जहां सती के अंग गिरे थे। पुराणों के अनुसार, पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित हुई सती ने योगबल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस समय माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए। इन्हीं स्थानों को शक्तिपीठ रूप में मान्यता मिली। महामाया मंदिर में माता का स्कंध गिरा था। इसीलिए इस स्थल को माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया. यहां प्रात:काल से देर रात तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है। माना जाता है कि नवरात्र में यहां की गई पूजा निष्फल नहीं जाती। यह मंदिर वास्तुकला के नागर घराने पर आधारित है।

मंदिर लगभग 12वीं शताब्दी में निर्मित माना जाता है। मंदिर के अंदर महामाया माता का मंदिर है। महामाया शक्तिपीठ में दर्शन का अपना अलग ही महत्व है। यहां माता सती के अंग तथा आभूषण की पूजा होती है। मान्यता है कि जो भक्त यहां श्रद्धापूर्वक भगवती महामाया के साथ-साथ भोलेनाथ के लिंग की पूजा करते हैं, वे इस लोक में सारे सुखों का भोगकर शिवलोक में जगह प्राप्त करते हैं।

वैसे तो सालभर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन मां महमाया देवी मंदिर के लिए नवरात्रों में मुख्य उत्सव, विशेष पूजा-अर्चना एवं देवी के अभिषेक का आयोजन किया जाता है। कैसे पहुंचें बिलासपुर-अंबिकापुर राजमार्ग पर बिलासपुर से 25 किलोमीटर दूर रतनपुर शहर स्थित है। बिलासपुर से निजी अथवा सरकारी वाहन से यहां पहुंच सकते हैं।

महामाया देवी मंदिर की प्रचलित कथाएं (Legends of Mahamaya Devi Temple)

छत्तीसगढ़ में शक्ति पीठ और देवियों की स्थापना को लेकर अनेक किंवदंतियां प्रचलित है। देवियों की अनेक चमत्कारी गाथाओं का भी उल्लेख मिलता है। इसमें राजा-महाराजाओं की कुलदेवी द्वारा पथ प्रदर्शन और शक्ति प्रदान करने से लेकर लड़ाई में रक्षा करने तक की किंवदंतियां यहां सुनने को मिलती है।

ग्राम्यांचलों में देवी के प्रकोप से बचने के लिये पूजा-अर्चना और बलि दिये जाने की प्रथा का भी प्रमुखता से उल्लेख मिलता है। सती प्रथा को भी इससे जोड़ा जाता है। आज भी अनेक स्थानों में सती चौरा देखा जा सकता है। सुख और दुख में उसकी पूजा-अर्चना करने से कार्य निर्विघ्नता से सम्पन्न हो जाते हैं, ऐसी मान्यता हैं। इसके लिए मनौतियां मानने का भी रिवाज है।

छत्तीसगढ़ में अनादि काल से शिवोपासना के साथ साथ देवी उपासना भी प्रचलित थी। शक्ति स्वरूपा मां भवानी यहां की अधिष्ठात्री हैं। यहां के सामंतो, राजा-महाराजाओं, जमींदारों आदि की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित आज श्रद्धा के केंद्र बिंदु हैं। छत्तीसगढ़ में देवियां अनेक रूपों में विराजमान हैं। श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ इन स्थलों को शक्तिपीठ की मान्यता देने लगी है।

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