षटतिला एकादशी कब है 2025 में, जानें भगवान विष्णु की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व। When is Shattila Ekadashi 2022? Shubh Muhurat, Puja vidhi…
Shattila Ekadashi 2025: षटतिला एकादशी का व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन 6 प्रकार से तिलों का उपोयग किया जाता है। इनमें तिल से स्नान, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन, तिल से तर्पण, तिल का भोजन और तिलों का दान किया जाता है, इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है।
षटतिला एकादशी कब है 2025 में (Shattila Ekadashi kab hai 2025 mein)
इस साल षटतिला एकादशी का व्रत 28 जनवरी दिन शुक्रवार को रखा जायेगा। पारण का अर्थ है व्रत तोड़ना। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद एकादशी का पारण किया जाता है। जब तक सूर्योदय से पहले द्वादशी समाप्त न हो जाए, तब तक द्वादशी तिथि के भीतर ही पारण करना आवश्यक है। द्वादशी में पारण न करना अपराध के समान है।
- षटतिला एकादशी 2025 (Shattila Ekadashi 2025): 25 जनवरी, शनिवार
- षटतिला एकादशी 2026 (Shattila Ekadashi 2026): 14 जनवरी, बुधवार
षटतिला एकादशी का शुभ मुहूर्त (Shattila Ekadashi shubh muhurat )
- एकादशी तिथि शुरू– 24 जनवरी, 2025 को रात के 07 बजकर 25 मिनट से
- एकादशी तिथि समाप्त – 25 जनवरी 2025 को रात के 8 बजकर 31 मिनट तक
पारण का समय: 26 जनवरी को सुबह 07 बजकर 12 मिनट से सुबह 09 बजकर 21 मिनट तक
पारण दिवस पर द्वादशी समाप्ति समय: रात 08 बजकर 54 मिनट तक पारण कर सकते है़।
षटतिला एकादशी पूजा विधि (Shattila Ekadashi Puja Vidhi)
- षटतिला एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर के भगवान विष्णु की पूजा करें और धुप ,पुष्प उनको अर्पित करें।
- फिर रात को भगवान विष्णु की अराधना और हवन करें। इस दिन शुक्रवार होने के कारण माता लक्ष्मी की पूजा करें।
- एकादशी के अगले दिन स्नान कर के भगवान विष्णु को भोग लगा कर अपने व्रत का समापन करें। और पंडितों को भोजन कराने के बाद ही स्वयं अन्न ग्रहण करें।
षटतिला एकादशी की कथा (Shattila Ekadashi katha)
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक समय नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम बैकुण्ठ पहुंचे. वहां उन्होंने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा. नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने बताया कि, प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी. उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी. वह मेरी अन्नय भक्त थी और श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करती थी. एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी उपासना की. व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया परंतु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी, इसलिए मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत: मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा मांगने गया.
जब मैंने उससे भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया. मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया. कुछ समय बाद वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई. यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला. खाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली कि, मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है. मैंने फिर उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान न बताएं.
स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से षटतिला एकादशी का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गई. इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि, जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है.
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