गुरु रविदास जी का जीवन परिचय | Guru Ravidas Biography in Hindi

Guru Ravidas Jayanti 2024 : इस साल गुरु रविदास जी की जयंती 645 वीं है। गुरु रविदास जयंती माघ पूर्णिमा को मनाई जाती है, जिसका अर्थ है माघ के दौरान पूर्णिमा का दिन। इस वर्ष गुरु रविदास जयंती 24 फरवरी दिन शनिवार को मनाई जा रही है। गुरु रविदास (1377-1540 ई.) भक्ति आंदोलन के प्रसिद्ध संत थे। उनके भक्ति गीतों और छंदों ने भक्ति आंदोलन पर स्थायी प्रभाव डाला। गुरु रविदास को रैदास, रोहिदास और रूहिदास के नाम से भी जाना जाता है। जयंती विशेष रूप से चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब सहित उत्तर भारत में मनाई जाती है।

उनका जन्मस्थान अब श्री गुरु रविदास जन्म स्थान के रूप में जाना जाता है और यह गुरु रविदास के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थान है।

गुरु रविदास जी का जीवन परिचय (Guru Ravidas Biography in Hindi)

  1. जन्म: 1377 एडी
  2. जन्म स्थान: वाराणसी, उत्तरप्रदेश
  3. पिता: श्री संतोक दास जी
  4. माता: श्रीमती कालसा देवी जी
  5. दादा: श्री कालूराम जी
  6. दादी: श्रीमती लखपती जी
  7. पत्नी: श्रीमती लोनाजी
  8. पुत्र: विजय दास जी
  9. मृत्यु: वाराणसी में 1540 एडी में।
Guru Ravidas Jayanti

Guru Ravidas Jayanti

गुरु रविदास का जन्म 1377 में उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर में संतोख दास और कालसा देवी के घर हुआ था। गुरु रविदास जी के पिता अपने गांव के सरपंच थे और साथ ही वह जूते बनाने और सुधारने का काम भी करते थे। रविदास जी के पिता मरे हुए जानवरों की खाल से चमड़ा बनाते थे और फिर चप्पल बनाते थे। गुरु रविदास जी हरिजन परिवार से थे और उनके साथ अछूत जैसा व्यवहार किया जाता था। रविदास जी अधियात्मिक ,धार्मिक और सामाजिक शिक्षाए देते थे ,गुरु रविदास जो को हो रहे जाति भेदभाव पसंद नहीं था और उनको यह बहुत सहना पड़ा। रविदास जी एक महान संत, कवि, दार्शनिक, समाज सुधारक और ईश्वर के भक्त थे। रविदास ने हिंदू-मुस्लिम जैसे छुआ-छूत की भावना को दूर करना चाहते थे। रविदास जी ने भगवान की स्तुति में बहुत से भजन लिखें है। रविदास जी का उद्देश्य हो रहे जाति और वर्ग के अन्याय को दूर करना था। वह सिख धर्मग्रंथों में पूजनीय हैं, और गुरु रविदास की 41 कविताओं को आदि ग्रंथ में शामिल किया गया है।

रविदास जी की शिक्षा (Sant Ravidas Education)

बचपन में संत रविदास जी गुरु पंडित शारदा नंद के के यहाँ पड़ने जाया करते थे लेकिन उच्च जाति के लोगों ने वहां पड़ने पर रोक लगा दी थी। हालाँकि पंडित शारदा ने यह महसूस करते थे की रविदास कोई सामान्य बालक न होकर एक ईश्वर के द्वारा भेजी गयी संतान है, फिर पंडित शारदानंद ने रविदास को अपनी पाठशाला में बुलाया और रविदास को पढ़ाने लगे। वो बहुत ही तेज और होनहार थे, पंडित शारदा नंद उनसे और उनके व्यवहार से बहुत प्रभावित रहते थे उनका विचार था कि एक दिन रविदास आध्यात्मिक रुप से प्रबुद्ध और महान सामाजिक सुधारक के रुप में जाने जायेंगे।

उनके पाठशाला में पंडित शारदानंद का पुत्र उनका मित्र था। एक दिन वह एक साथ लुका-छिपी खेल खेलने लगे। पहली बार रविदास जी जीते और दूसरी बार उनके मित्र की जीत हुयी। अगली बार, रविदास जी की बारी थी लेकिन अंधेरा होने की वजह से खेल को अगले दिन सुबह जारी रखने का फैसला किया। दूसरे दिन मित्र न आने की वजह से वह उनके घर गए। घर पहुंचने से पहले ही उनको अपने मित्र की मौत की खबर सुनते ही हक्का-बक्का हो गए। संत रविदास जो को अलौकिक शक्तियां मिली हुए थी। रविदास ने अपने मित्र से कहा कि उठो ये सोने का समय नहीं है दोस्त, ये तो लुका-छिपी खेलने का समय है। रविदास के ये शब्द सुनते ही उनके मित्र फिर उठे। यह सब देखते ही सभी लोग चकित रह गये।

गुरु रविदास जी का वैवाहिक जीवन

भगवान के प्रति उनके प्यार और भक्ति की वजह से वह अपने पिता के व्यवसाय में मदद नहीं कर पा रहे थे। अपने परिवार के व्यवसाय से कोई रूचि नहीं थी इस वजह से उनके पिता ने रविदास की छोटी उम्र में श्रीमती लोना देवी से विवाह कर दिया था जिसके बाद उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम विजयदास पड़ा।

संत रविदास सांसारिक मोह की वजह से और पारिवारिक व्यवसाय में रूचि न होने के कारण उनके पिता ने पारिवारिक संपत्ति से अलग कर दिया। जिसके बाद रविदास अलग रहने लगे और सांसारिक जीवन को निभाने के लिये पूरी तरह से अपनी सामाजिक मामलों से जुड़ गये।

रविदास जी सामाजिक कार्य करने के साथ साथ धार्मिक होने का भी बढ़ावा देते थे। भगवान के रूप के प्रति उनकी भक्ति बढ़ने के कारण विभिन्न स्वरुप राम, रघुनाथ, राजा राम चन्द्र, कृष्णा, गोविन्द आदि के नामों का इस्तेमाल करते थे।

गुरु रविदास जी सामाजिक काम (Sant Ravidas his teachings)

रविदास जी हमेशा जाति और छुआ-छूत जैसे अन्याय को दूर करना चाहते थे। वह बचपन से ही जाति भेदभाव का सामना किया। उनका कहना था की व्यक्ति रंगो ,जाति के नाम से नहीं जाना जाता , बल्कि कर्मो से पहचाना जाता है। उन्होंने समाज में फैले छुआछूत के प्रचलन को खत्म करने की शिक्षा दी। ;पहले से ही छोटे वर्ग के लोगो को नाकारा जाता है और उनको पक्के मकान की जगह कच्चे मकान या झोपड़ियों में रहने को कहते थे। समाज में फैले छुआछूत की वजह से उनका मंदिर में पूजा करना, स्कूल में पढाई करना, गाँव में दिन के समय निकलना पूरी तरह वर्जित था, उन्होंने समाज की यह दुर्दशा देख के समाज को इस छुआछूत से बदलने की ठानी और शिक्षा देने की शुरुआत की।

रविदास जी यही सन्देश देते थे कि ‘भगवान् ने इन्सान को बनाया है, न की इन्सान ने भगवान् को’ बनाया है। रविदास जी ने शिक्षा दी कि भगवान ने सबको सामान रूप दिया है इस लिए समान अधिकार मिलने चाहिए।

गुरु रविदास जी के पिता की मृत्यु (Guru Ravidas Father Death)

रविदास की पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने पड़ोसियों से मदद मांगी की कि वो गंगा नदी के किनारे अपने पिता का अंतिम संस्कार करने में मदद करें। ब्राह्मण इसके खिलाफ थे कि वह गंगा के जल से स्नान करेंगे जिससे उनके नहाने से प्रदूषित हो जायेगा। इस बात से गुरु जी बहुत दुखी और मजबूर हो गये उन्होंने कभी भी अपना संयम नहीं खोया और अपने पिता की आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना करने लगे। अचानक से वातावरण में एक भयानक तूफान आया और नदी का पानी उल्टी दिशा में बहना प्रारंभ हो गया और जल की एक गहरी तरंग आयी और लाश के अवशेषो को अपने साथ ले गयी। तब से यह गंगा का पानी उल्टी दिशा में बह रहा है।

गुरु रविदास और बाबर मुगल साम्राज्य

भारत इतिहास के अनुसार बाबर मुगल साम्राज्य का पहला राजा था जो 1526 में पानीपत का युद्ध जीतने के बाद दिल्ली पर कब्ज़ा किया। वह संत रविदास की आध्यात्मिक शक्तियों से पहले से ही परिचित था और वह हुमायुँ के साथ गुरु जी से मिलने जाता है। वह जाते ही गुरु जी को सम्मान देने के लिये उनके पैर छूए हालाँकि आशीर्वाद के बजाय उसे गुरु जी से सजा मिली क्योंकि उसने लाखों निर्दोष लोगों की हत्याएँ की थी। गुरु जी ने उसे गहराई से समझाया जिसने बाबर को बहुत प्रभावित किया और इसके बाद वो भी संत रविदास जी की तरह समाज सेवा करने लगा।

गुरु रविदास जी की मृत्यु (Guru Ravidas Date of Death)

गुरु रविदास जी की सच्चाई, मानवता, भगवान् के प्रति प्रेम, और बहुत से कारणों की वजह से बदलते समय के साथ संत रविदास के अनुयायीयों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी। दूसरी तरफ, कुछ ब्राह्मण गुरु जी को मारने की योजना बना रहे थे इस वजह से उन लोगों ने गाँव से दूर एक सभा का आयोजन किया।हालाँकि गुरु जी को अपनी दैवीय शक्ति की वजह से पहले से ही सब कुछ पता चल गया था।

जैसे ही सभा का सुभारंभ करते है , गुरु जी उन्ही के एक साथी भल्ला नाथ के रुप में दिखायी दिये जो तब गलती से मारा गया था। गुरु जी थोड़ी देर बाद जब अपने कक्ष में शंख बजाते है, तो सब अचंभित हो जाते है. अपने साथी को मरा देख वे बहुत दुखी होते है, और दुखी मन से गुरु जी के पास जाते है.

हालाँकि, उनके कुछ अनुयाईयों का मानना है कि गुरु रविदास जी की मृत्यु 120 या 126 साल में हो गयी थी। कुछ का मानना है उनका निधन वाराणसी में 1540 एडी में हुई थी।

गुरु रविदास जयंती 2024 में कब है (Guru Ravidas Jayanti 2024 Date)

गुरु रविदास की 645वीं जयंती 24 फरवरी दिन शनिवार को मनाया जायेगा।

गुरु रविदास जयंती 2024 (Guru Ravidas Jayanti 2024): 24 फरवरी 2024 दिन शनिवार

गुरु रविदास जयंती 2025 (Guru Ravidas Jayanti 2025): 12 फरवरी 2025 दिन बुधवार

गुरु रविदास जयंती कैसे मनाई जाती है (How is Guru Ravidas Jayanti celebrated)

इस अवसर को मनाने के लिए, ‘अमृतबनी गुरु रविदास जी’ का पाठ किया जाता है और अनुयायियों द्वारा एक विशेष आरती की जाती है। इस दिन श्रद्धालु पवित्र नदी में नहाने जाते हैं। विशेष रूप से भवनों में गुरु रविदास को समर्पित मंदिरों में भी पूजा-अर्चना की जाती है। यह उत्सव श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर में होता है। दुनिया भर से अनुयायी यहां आते हैं और इस अवसर को मनाते हैं। त्योहार की प्रमुख विशेषता नगर कीर्तन है। यह उत्सव बहुत ही ख़ुशी से मानते है।

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Manisha
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