
रक्षाबंधन कब है 2022 में | राखी बांधने का शुभ मुहूर्त कब है | Raksha Bandhan 2022
रक्षाबंधन 2022: रक्षाबंधन भाई बहन के प्रेम का प्रतीक है। यह त्योहार भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। बहनें रक्षाबंधन के त्यौहार का बहुत ही बेसब्री से इंतजार करती हैं। रक्षा बंधन त्यौहार में बहन अपने भाई के कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई की लंबी आयु और सफलता की कामना करती है। रक्षा बंधन को राखी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
रक्षाबंधन कब है 2022 में (Raksha Bandhan 2022)
रक्षाबंधन का त्यौहार हिंदू पंचांग के अनुसार यह तय किया जाता है। यह त्यौहार हर वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस साल 2022 में रक्षा बंधन 11 अगस्त दिन गुरूवार को मनाया जायेगा।
- रक्षाबंधन 2022 (Raksha Bandhan 2022) – 11 अगस्त 2022
- रक्षाबंधन 2023 (Raksha Bandhan 2023) – 30 अगस्त 2023
- रक्षाबंधन 2024 (Raksha Bandhan 2024) – 19 अगस्त 2024
- रक्षाबंधन 2025 (Raksha Bandhan 2025) – 09 अगस्त 2025
रक्षाबंधन 2022 शुभ मुहूर्त (Raksha Bandhan 2022 Shubh Muhurat)
राखी बांधने का शुभ समय: – सुबह 08 बजकर 51 मिनट से रात के 09 बजकर 13 मिनट तक।
रक्षाबंधन कैसे मनाते हैं (Raksha Bandhan kaise Manate Hai)
बहनें पहले थालियां सजाती हैं और उसमें हल्दी रोली चंदन थोड़े से चावल रखकर और धूप जलाकर भाई की पूजा करती हैं और भाई की हाथ की कलाई पर राखी पहनाती हैं। फिर भाई की पसंदीदा मिठाई उसको खिलाती है और भाई की सुख समृद्धि और लम्भी आयु की कामना करती है। भाई राखी बांधने के बाद अपनी बहन को उपहार देता है और उसकी जीवन भर रक्षा का वचन देता है।
रक्षाबंधन का इतिहास (History of Raksha Bandhan)
रक्षा बंधन त्यौहार को मानाने को लेकर बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं। जिनमे से मुख्य दो कहानियां निम्नलिखित हैं।
- महाभारत के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने दुष्ट राजा शिशुपाल को मारने के लिए सुदर्शन चक्र चलाया था उसी दौरान उनके हाथ में चोट लग गयी। द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्ला फाड़ कर श्री कृष्ण के हाथ पर बाँध दिया था। फिर भगवान श्री कृष्ण ने उनकी जीवन भर रक्षा का वचन दिया। द्रौपदी भगवान श्री कृष्ण को अपना भाई मानती थी।
- एक अन्य ऐतिहासिक कहानी के अनुसार चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने राजा हुमायूं को राखी भेजी और अपनी रक्षा का वचन माँगा। हुमांयूं ने रानी कर्णावती की राखी का मान रखते हुए रानी और चित्तोड़ को गुजरात के राजा से बचाया।
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