Hanuman Chalisa: ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री हनुमान आज भी जिंदा हैं और हमारे बीच में हैं। श्री हनुमान जी की पूजा करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। जो हमेसा श्री हनुमान चालीसा का जाप करता है उसके बिगड़े हुए काम बन जाते हैं। श्री हनुमान चालीसा को महा कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा था। यह अवधी भाषा में लिखी गयी है।
श्री हनुमान चालीसा का पाठ कितनी बार करना चाहिए ?
श्री हनुमान चालीसा का पाठ दिन में 3 बार, 7 बार , 11 बार, 21 बार, 51 बार या 108 करने से आपके दुखों का निवारण होगा। अगर आप इस तरह से भी हनुमान चालीसा का पाठ (Shri Hanuman Chalisa Path) नहीं कर सकते तो केसे भी कहीं भी, कितनी बार भी पढ़िए। तुलसीदास जी कहते हैं हनुमान चालीसा कोई भी, कहीं भी और कितनी बार पढ़ सकता है। श्री हनुमान का नाम स्मरण करने भर से ही आपके काम बन जाते हैं।
श्री हनुमान चालीसा (Shri Hanuman Chalisa Hindi Mein)
आप भी रोज श्री हनुमान चालीसा पढ़ें, आपके बिगड़े हुए काम बनने लगेंगे। प्रतुस्त है श्री हनुमान चालीसा।
श्री हनुमान चालीसा दोहा:
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार।।
श्री हनुमान चालीसा चोपाई:
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥१॥
महाबीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा कानन कुंडल कुँचित केसा ॥२॥
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे काँधे मूँज जनेऊ साजे
शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जगवंदन ॥३॥
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मनबसिया ॥४॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर सँहारे रामचंद्र के काज सवाँरे ॥५॥
लाय सजीवन लखन जियाए श्री रघुबीर हरषि उर लाए
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥६॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै अस कहि श्रीपति कंठ लगावै
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ॥७॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कवि कोविद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥८॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥९॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही जलधि लाँघि गए अचरज नाही
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥१०॥
राम दुआरे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना ॥११॥
आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हाँक ते काँपै
भूत पिशाच निकट नहि आवै महाबीर जब नाम सुनावै ॥१२॥
नासै रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा
संकट ते हनुमान छुडावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥१३॥
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावै सोइ अमित जीवन फल पावै ॥१४॥
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा
साधु संत के तुम रखवारे असुर निकंदन राम दुलारे ॥१५॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ॥१६॥
तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख बिसरावै
अंतकाल रघुवरपुर जाई जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥१७॥
और देवता चित्त ना धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई
संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥१८॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ कृपा करहु गुरु देव की नाई
जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदि महा सुख होई ॥१९॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥२०॥
श्री हनुमान चालीसा दोहा:
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
श्री हनुमान चालीसा की व्याख्या श्री विजय कौशल जी के शब्दों में।
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